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08 फ़रवरी 2013

प्याज के थोक कारोबार में व्यापारियों के कार्टेल हावी

दूसरा पहलू - प्याज के मूल्य निर्धारण में किसानों की कतई नहीं चलती निष्कर्ष प्याज की मूल्य वृद्धि का असर खाद्य सुरक्षा पर उपभोक्ता और किसान के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव कुछ व्यापारियों के हाथ में ही सीमित है समूचा बाजार एपीएमसी अधिकारियों को नीलामी में जोडऩे का सुझाव कोऑपरेटिव सोसाइटी को नीलामी में बढ़ावा दिया जाए कम्पटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) का कहना है कि देश के प्याज मार्केट में व्यापारी हावी हैं। इसमें कार्टेलाइजेशन और जमाखोरी खूब होती है, इसी का असर मूल्य पर पड़ता है। सीसीआई द्वारा किए गए एक स्टडी का निष्कर्ष है कि प्याज बाजार में कई तरह की गड़बडिय़ां हैं। स्टडी के अनुसार प्याज के बाजार में कई तरह की गड़बडिय़ां मौजूद हैं और इसमें कई कार्टेल सक्रिय हैं। सीसीआई के लिए बेंगलुरू स्थित इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज द्वारा यह अध्ययन किया गया है। इसमें प्रमुख प्याज उत्पादक क्षेत्र महाराष्ट्र और कर्नाटक की मंडियों में बारीकी से अध्ययन किया गया है। यह रिपोर्ट पिछले दिसंबर में सीसीआई को सौंप दी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि सीजनल हलचल, दैनिक व मासिक आवक और उसके मूल्य के बीच संबंधों से संकेत मिलते हैं कि प्याज के बाजार में प्रतिस्पर्धा विरोधी तत्व मौजूद हैं। हाल में जारी रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कुछ बड़े व्यापारियों का बाजार मध्यस्थों के साथ संपर्क है। ये व्यापारी और मध्यस्थ जमाखोरी करके प्याज के मूल्य को प्रभावित करते हैं। एक अहम तथ्य यह सामने आया है कि प्याज के बाजार में पूरी तरह व्यापारी हावी है। किसानों की इसमें कोई भूमिका नहीं है। ज्यादातर किसानों की होल्डिंग काफी छोटी होने के कारण प्राइस डिस्कवरी में उनकी कोई खास भूमिका नहीं है। किसान के पास 1.15 से 1.3 एकड़ की छोटी होल्डिंग होने, प्रतिकूल मौसम और मूल्य को लेकर जोखिम होने के कारण किसानों की बाजार में कोई अहमियत नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर कारोबार कमीशन एजेंटों और व्यापारियों के हाथ में है। व्यापार की कुशलता और बाजार की जानकारी न होने तथा स्टॉक रखने की अक्षमता के कारण किसान बाजार पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाते हैं। रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि प्याज के मूल्य का खाद्य सुरक्षा पर भारी प्रभाव पड़ता है। किसान और उपभोक्ताओं के हित भी इससे प्रभावित होते हैं। काफी ज्यादा मार्केटिंग लागत, बाजार की बुनियादी सुविधाओं की कमी, कुछ व्यापारियों के हाथ में बाजार का नियंत्रण होने, नए व्यापारियों के प्रवेश पर प्रतिबंध और आए दिन कारोबारियों की हड़ताल के कारण प्याज के दाम बढ़ते हैं। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि व्यापारियों में सांठ-गांठ रोकने के लिए एग्री प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (एपीएमसी) के अधिकारियों की नीलामी प्रक्रिया में भूमिका होनी चाहिए। इसके अलावा कोऑपरेटिव मार्केटिंग सोसाइटी को नीलामी में बढ़ावा दिया जाना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में प्याज सबसे संवेदनशील कमोडिटीज में रही है। (Business Bhaskar)

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