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26 फ़रवरी 2013

कृषि क्षेत्र में अनुसंधान, भंडारण और परिवहन पर दिया जाए ध्यान'

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि खेती-बाड़ी को फायदेमंद बनाने के लिए बजट में सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल पर जहां गांवों में भंडारण और बेहतर परिवहन सुविधाओं के विकास पर विशेष जोर देने की जरूरत है। फसलों की उपज अधिक लेने के लिए अनुसंधान पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। इस सप्ताह बजट की संभावनाओं पर बचचीत में विशेषज्ञों ने कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति ऊंची है। इससे निपटने के लिए उपज बढ़ाने तथा किसानों को दलहन, तिलहन और सब्जियों की खेती की ओर आकर्षित करने के उपायों की जरूरत है। अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री योगेन्द्र के अलघ ने कहा कृषि गतिविधियों की तरफ लोगों को आकर्षित करने के लिए जरूरी है कि खेती-बाड़ी को लाभप्रद बनाया जाए। इसके लिये गांवों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर आधारित भंडारगह, परिवहन जैसी आधारभूत सुविधाओं के विकास पर विशेष जोर देने की जरूरत है। बेंगलूर स्थित इंस्टीटयूट ऑफ सोशल एंड इकनोमिक चेंज में कषि विकास एवं ग्रामीण परिवर्तन केन्द्र (एडीआरटीसी) के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार ने भी गांवों में भंडारण, परिवहन जैसी ढांचागत सुविधाओं पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा, इनके अभाव में खासकर जल्दी खराब होने वाली फसलों के मामले में विविधीकरण सीमित होता है। वहीं दूसरी तरफ इन खाद्य पदार्थों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इससे छोटे एवं सीमांत किसानों को फायदा होगा क्योंकि उनके पास परिवार स्तर पर अधिशेष श्रम है जिससे वे इन फसलों के मामले में ज्यादा प्रतिस्पर्धी स्थिति में हैं। प्रमोद कुमार ने कहा कि जब तक बिजली, सड़क सार्वजनिक ढांचागत सुविधाओं का विकास नहीं होता गांवों एवं कस्बों में कोई भी उद्यमी भंडारण सुविधा एवं गोदामों में निवेश नहीं करेगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब तक गांवों में 24 घंटे बिजली नहीं दी जाती कोई भी उद्यमी ग्रामीण क्षेत्रों में गोदामों में निवेश नहीं करेगा क्योंकि डीजल आधारित जनरेटर से वे अपने कारोबार को ज्यादा दिन तक लाभदायक नहीं बनाए रख सकते। खाद्य वस्तुओं की ऊंची कीमत के मद्देनजर बजट से उम्मीद के बारे में पूछे जाने पर वाई के अलघ ने कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति दलहन, खाद्य तेल, फल, सब्जी एवं दूध के मामले में ज्यादा है। इससे निपटने के लिए इनकी उपज बढ़ाने तथा किसानों को इसकी खेती के लिये आकर्षित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दलहन के मामले में अल्पकालीन रणनीति के तहत उन पिछड़े क्षेत्रों में दलहन उत्पादकों को लाभदायक कीमत देने की जरूरत है जहां उनका अधिक उत्पादन किया जा सकता है। फिलहाल दलहान जैसी फसलों के संदर्भ में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कागजों पर है। साथ ही आई शक्ति दाल जैसी पहल को आगे बढ़ाने के लिए पीपीपी माडल की जरूरत है, लेकिन बजटीय समर्थन के बिना यह संभव नहीं है और यही स्थिति तिलहन में अपनाये जाने की जरूरत है। टाटा समूह की कंपनी ने 2010 में दाल के क्षेत्र में कदम रखा था। पीपीपी माडल के तहत पंजाब और तमिलनाडु में शुरू की गयी अधिक दाल उपजाओ योजना के तहत कंपनी ने दाल की खरीद और बिक्री के क्षेत्र में कदम रखा था। कुमार ने कहा कि हालांकि खाद्य वस्तुओं की कीमत ऊंची है लेकिन लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं मिलता और इसका फायदा व्यापारी उठा लेते हैं। इसका कारण किसान और उपभोक्ताओं के बीच बिचौलियों की एक पूरी श्रृंखला का होना है। इसे दूर करने की जरूरत है। कृषि शोध के बारे में अलघ ने कहा कि उत्पादन और उपज बढाने के लिये शोध पर ध्यान देने की जरूरत है। अगर दलहन का उदाहरण लिया जाए तो जो हमारे पास जो बेहतर बीज है, उससे हम करीब डेढ टन प्रति हेक्टेयर उपज ले सकते हैं जबकि आस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में करीब ढाई टन प्रति हेक्टेयर उपज ली जाती है और फलत: वे भारत को निर्यात करते हैं। उन्होंने कहा कि 12वीं योजना के दस्तावेज में कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र यह काम करेगा जो सही नहीं है। हमें आईसीएआर की अगुवाई में रणनीतिक योजना की जरूरत है। लेकिन यह पीपीपी माडल के अंतर्गत होना चाहिए। कुमार ने कहा कि किसानों खासकर छोटे एवं मझोले किसानों को कम-से-कम सिंचाई के लिए सस्ता डीजल की व्यवस्था करने की जरूरत है। साथ ही किसान काल सेंटर जैसी सुविधाओं का भी विस्तार किये जाने की आवश्यकता है ताकि छोटे एवं मझोले किसानों तक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी की पहुंच हो सके और वे उसे जान सके। उन्होंने कहा कि देश में 60 प्रतिशत से अधिक भूमि गैर-सिंचित है। इनके विकास के लिये वाटरशेड तथा शुष्क भूमि में खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है। (hindustan Hindi)

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