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04 मार्च 2013

रबर आयात पर बढ़ेगा शुल्क

सरकार ने प्राकृतिक रबर पर आयात शुल्क 20 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़ाकर अधिकतम 34.20 रुपये प्रति किलोग्राम करने का फैसला किया है। यह फैसला वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा की तरफ से नई दिल्ली में बुलाई गई आला बैठक में किया गया। रबर बोर्ड के अध्यक्ष शीला थॉमस और केरल के सांसद भी बैठक में थे। वाणिज्य मंत्रालय जल्द ही इस बारे में अधिसूचना जारी करेगा। बैठक में पिछले तीन वर्षों की औसत कीमत या मौजूदा कीमतों के आधार पर प्राकृतिक रबर के आयात पर लगने वाले शुल्क की दर संशोधित करने का निर्णय लिया गया। वर्ष 2010, 2011 और 2012 में रबर की औसत कीमतों के आधार पर शुल्क की दर निर्धारित की जाएंगी, जो 171 रुपये प्रति किलो होती हैं। पहले यह भाव 102 रुपये प्रति किलो था, जो वर्ष 2008, 2009 और 2010 की औसत कीमतों पर आधारित था। इस लिहाज से दर (20 फीसदी) बढ़ाए बगैर शुल्क में वृद्घि की जाएगी। यह सब तब हो रहा है, जब घरेलू बाजार में प्राकृतिक रबर की कीमत इसके अंतरराष्टï्रीय भाव की तुलना में कम है। घरेलू बाजार में आरएसएस-4 ग्रेड के प्राकृतिक रबर का भाव 156 रुपये प्रति किलो है, जबकि इसकी अंतरराष्टï्रीय कीमत 163 रुपये प्रति किलो है। पिछले कुछ सप्ताह से प्राकृतिक रबर की स्थानीय कीमतों में गिरावट का रुझान है और इस वजह से केरल के रबर किसानों में घबराहट है, जहां 92 फीसदी प्राकृतिक रबर का उत्पादन होता है। इस जिंस की कीमतों में निरंतर गिरावट आने से केरल की यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) सरकार पर राजनीतिक दबाव है। राजनीतिक दलों ने प्राकृतिक रबर के आयात पर शुल्क बढ़ाने का दबाव डाला है। टायर उद्योग ने की फैसले की आलोचना ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटमा) के अध्यक्ष अनंत गोयनका ने कहा है कि प्राकृतिक रबर के आयात पर प्रतिबंध लगाने जैसे उपायों का दूरगामी परिणाम होगा। टायर उद्योग पर इसका प्रतिकूल असर होगा और लंबी अवधि में रबर क्षेत्र की समूची मूल्य-शृंखला पर इसका असर नजर आएगा। उन्होंने कहा कि यह फैसला इस क्षेत्र से जुड़े अन्य पक्षों को अपनी राय रखने का मौका दिए बगैर किया गया, खास तौर पर उन कंपनियों से सुझाव नहीं लिया गया जो प्राकृतिक रबर की प्रमुख उपभोक्ता हैं। उन्होंने कहा, 'प्राकृतिक रबर के आयात पर शुल्क बढ़ाने से उद्योग पर ऐसे समय में बहुत गहरा असर होगा, जब बड़े एवं भारी वाहन उद्योग का कारोबार तेजी से गिर रहा है। वाणिज्यिक वाहनों समेत तमाम बड़े वाहनों की बिक्री कम होने से टायरों की मांग घटी है। टायर उद्योग का 60 फीसदी कारोबार वाणिज्यिक वाहनों से ही आता है। (BS Hindi)

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