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22 मार्च 2013

टायर कंपनियों ने घटाईं कीमतें

प्रमुख टायर कंपनियों ने सभी प्रकार के टायरों की कीमतें 1 से 5 फीसदी तक घटाई हैं। इनमें सीएट और एमआरएफ शामिल हैं, जबकि अपोलो पहले ही कीमत घटा चुकी है। अपोलो ने व्यावसायिक वाहनों के टायरों की कीमतों में 1-1.5 फीसदी और कार टायरों में 2 फीसदी कमी की है। ज्यादातर कंपनियों ने पिछले कुछ सप्ताह के दौरान कीमतों में कमी की है। हालांकि कंपनियों का कहना है कि वे प्राकृतिक रबर की घटी कीमतों का लाभ ग्राहकों को दे रही हैं, लेकिन इसके कई कारण हैं। वास्तव में वाहनों के मूल उपकरण (ओई) क्षेत्र से टायरों की मांग घटने से कंपनियां कीमतें घटाने को बाध्य हुई हैं। वाहनों के उत्पादन और बिक्री में गिरावट का टायर उद्योग पर असर पड़ा है, क्योंकि ओई खंड टायरों का बड़ा खरीदार होता है। इससे टायर कंपनियां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं और उनका स्टॉक बढ़ गया है। लेकिन अब कंपनियां स्टॉक निकालना चाहती हैं और कीमतों में कमी के पीछे यह एक प्रमुख वजह है। टायर उद्योग के सूत्रों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि कंपनियों ने इस मुश्किल हालात का सामना करने के लिए तितरफा रणनीति बनाई है। पहली, कीमतों में कमी। दूसरी, वितरकों को छूट देना और तीसरी उत्पादन में कमी। कोई भी कंपनी खुले रूप से यह स्वीकार नहीं करती है कि वह मुश्किल में है और उसने उत्पादन घटाया है। लेकिन वे इस स्थिति से पार पाने के लिए ये तीनों रास्ते अपना रही हैं। अपोलो टायर्स के प्रमुख (भारतीय परिचालन) सतीश शर्मा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि उन्होंने उत्पादन घटाया है। उन्होंने कहा, 'यह हमारी उत्पादन रणनीति का हिस्सा है। हमने किसी संयंत्र को बंद नहीं किया है, लेकिन बाजार की जरूरत के मुताबिक उत्पादन कम किया है।Ó उन्होंने कहा कि सभी प्रकार के टायरों की मांग में सुस्ती है। सबसे ज्यादा मांग में कमजोरी व्यावसायिक वाहनों के क्षेत्र में है, इसलिए वाहन क्षेत्र में संकट का टायर कंपनियों पर बुरा असर पड़ रहा है। लेकिन जनवरी और फरवरी की तुलना में मार्च में स्थिति थोड़ी सुधरने की संभावना है। विशेषज्ञों के अनुसार देश में मॉनसून की अच्छी बारिश से स्थिति बदल सकती है। रिप्लेसमेंट सेगमेंट में भी सुस्ती है, क्योंकि डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण परिवहन उद्योग की हालत भी ठीक नहीं है। एक विशेषज्ञ ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि टायर कीमतों में कमी रबर कीमतों में गिरावट के कारण नहीं बल्कि भारी स्टॉक की वजह से की गई है। फिलहाल टायर उद्योग की प्रमुख चिंता रबर की कीमतें नहीं बल्कि इसकी उपलब्धता में कमी है। ज्यादातर कंपनियों ने उत्पादन कम कर दिया है क्योंकि बाजार में सुस्ती है। कुछेक को अगले वित्त वर्ष में भी आशा की किरण नजर नहीं आ रही है। टायर सेगमेंट की स्थिति सुधरने में करीब दो साल लग सकते हैं। इसलिए मंदी टायर कंपनियों को अपना स्टॉक निकालने के लिए कई रणनीतियां अपनाने को बाध्य रही है। इन रणनीतियों में से एक कीमतों में कमी है। (BS Hindi)

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