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31 मई 2013

जीएम फसलों से अनावश्यक भय

आनुवंशिक रूप से परिवद्र्धित (जेनेटिकली मॉडिफाइड- जीएम) खाद्य फसलों के बारे में हर तरह के परीक्षण पर फिलहाल रोक न लगाकर सुप्रीम कोर्ट ने उचित राह अपनाई है। कोर्ट ने तकनीकी विशेषज्ञ समिति (टीईसी) से कहा कि उसकी सिफारिशों पर अनेक क्षेत्रों से आए एतराजों पर वह तमाम तथ्यों की रोशनी में नए सिरे से गौर करे। इस समिति ने ऐसी फसलों के हर तरह के परीक्षण पर दस वर्षों के लिए रोक लगाने की अनुशंसा की थी। मगर केंद्र सरकार और जीएम फसलों पर परीक्षण से जुड़ी एक कंपनी ने इस सिफारिश का विरोध किया है। अनेक जानकार भी इससे सहमत नहीं हैं कि वैज्ञानिक शोध को कुछ आशंकाओं के आधार पर रोक दिया जाए और उससे जुड़ी संभावनाओं का दरवाजा बंद कर दिया जाए। हर नई चीज से भयभीत होना अनेक लोगों की आदत का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इस बुनियाद पर प्रयोग, परीक्षण और प्रगति को रोक देना कतई वांछित नहीं है। सरकार ने यह उचित ही ध्यान दिलाया है कि देश की बढ़ती आबादी को भविष्य में अनाज नसीब हो सके, इसके लिए जीएम फसलें एक उम्मीद हैं। जब बड़ी आबादी वाले तमाम विकासशील देश इन फसलों पर अनुसंधान कर रहे हैं, तब भारत में भी उसे नहीं रोका जा सकता। ऐसी फसलों से सुरक्षा का जो खतरा बताया जाता है, उस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि अगर परीक्षण ही रुक गए, तो फसलों की सुरक्षा से जुड़े प्रयोगों पर भी विराम लग जाएगा। फिर कभी वो समय नहीं आएगा, जब ऐसी फसलों को पूर्णत: सुरक्षित मानकर उनकी खेती की जाए। इस संदर्भ में विनियमन एवं निगरानी की व्यवस्थाएं सबसे अहम मुद्दे हैं। अगर इनकी चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था हो सके तो फिर कोई वजह नहीं है, जिसके आधार पर जीएम फसलों पर प्रयोग या भविष्य में उनके उपयोग को प्रतिबंधित करने की जरूरत पड़े। गौरतलब है कि बीजों में वैज्ञानिक ढंग से सुधार की लंबी परंपरा है, जिससे पैदावार बढ़ाने में लगातार मदद मिली है। देश की हरित क्रांति में भी संकर बीजों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह तकनीक और आगे बढ़ी है। इसके उपयोग में सतर्कता जरूरी है, लेकिन इनसे मुंह मोड़ लेना बुद्धिमानी नहीं है। (Dainik Bhaskar)

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