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07 मई 2013

खाद्य सुरक्षा बिल के औचित्य पर सीएजी ने उठाए गंभीर सवाल

नई दिल्ली। यूपीए सरकार एक ओर जहां खाद्य सुरक्षा विधेयक को संसद से पास कराने की कवायद कर रही है, वहीं महानियंत्रक एवं लेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी रिपोर्ट में अनाज के भंडारण, रखरखाव और समर्थन मूल्य तय करने में मनमानी को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट एफसीआइ की अनाज भंडारण व्यवस्था एवं वितरण में गंभीर खामियां पाई हैं। सीएजी ने रिपोर्ट में ऑडिट की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहा है कि 2006-07 से लेकर 2011-12 के बीच अनाज खरीद 343 लाख मिट्रिक टन से बढ़कर 634 लाख मिट्रिक टन हो गई। परिणामस्वरूप, जून 2007 से जून 2012 के बीच केंद्रीय पूल में अनाज का स्टॉक 259 मिट्रिक टन से बढ़कर 824 मिट्रिक टन हो गई। अनाज का स्टॉक इस तरह से बढ़ने से भंडारण व्यवस्था एवं वितरण पर बुरा असर पड़ा। यही वजह ही आए दिन अनाज की बर्बादी होती दिख रही है। मालूम हो कि इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से सवाल करते हुए कहा था कि क्यों न अनाज को गरीबों में बांट दिया जाए लेकिन सरकार ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया था। सीएजी ने रिपोर्ट में कहा है कि अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के लिए कोई विशेष मानदंड नहीं अपनाया जाता है। परिणामत: 2006-07 से 2011-12 के बीच गेहूं की उत्पाद कीमत और न्यूनतम समर्थन मूल्य में 29 फीसद से लेकर 66 फीसद के बीच अंतर पाया गया है। वहीं, धान के मामले में यह अंतर 14 से 60 फीसद के बीच है। केंद्र सरकार द्वारा मनमाने ढंग से समर्थन मूल्य में वृद्धि का खामियाजा अनाज खरीदने वाले राज्य सरकारों को भुगतना पड़ता है। यही वजह है कि सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ता है और यदि एफसीआइ से अनाज की खरीदारी नहीं हुई तो वह धीरे-धीरे बर्बाद हो जाता है। सीएजी ने रिपोर्ट में अनाज की बर्बादी की वजह साफ करते हुए कहा है कि एफसीआइ के पास 2006-07 से 2011-12 के बीच अनाज खरीदारी एवं भंडारण क्षमता में भारी अंतर पाया गया है। एफसीआइ के पास मार्च 2012 तक अपनी भंडारण क्षमता 332 लाख मिट्रिक टन की होनी चाहिए थी, लेकिन तक तक यह केवल 163 लाख मिट्रिक टन ही रही। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन छह वर्षो के दौरान एफसीआइ ने अपनी क्षमता में केवल 34 लाख मिट्रिक टन की वृद्धि कर सका। अनाज भंडारण एवं वितरण में गंभीर खामियों को देखते हुए सरकार की बहुप्रतीक्षित खाद्य सुरक्षा बिल लाना बेमानी ही लगती है। जब तक पूरी सरकारी प्रणाली में बदलाव लाए इस बिल का अक्षरश: लागू होना मुश्किल जान पड़ता है। आइए जानें, क्या है खाद्य सुरक्षा बिल : -खाद्य सुरक्षा बिल के बारे में दावा किया गया है कि इससे देश की दो तिहाई आबादी को सस्ता अनाज मिलेगा। -इसमें गरीबी रेखा से नीचे एवं सामान्य कोटि में गरीबी रेखा के ऊपर आने वाले परिवारों को लाभ मिलेगा। -ग्रामीण क्षेत्र में इस बिल के दायरे में 75 फीसद आबादी आएगी, जबकि शहरी क्षेत्र में इस विधेयक के दायरे में 50 फीसद आबादी आएगी। -विधेयक में प्रत्येक प्राथमिकता वाले परिवारों को तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल और दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गेहूं उपलब्ध कराने की बात कही गई है। -खाद्य सुरक्षा विधेयक के मसौदे के प्रावधानों के तहत देश की 63.5 प्रतिशत जनता को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जाएगी। -खाद्य सुरक्षा विधेयक का बजट पिछले वित्तीय वर्ष के 63,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 95,000 करोड़ रुपये कर दिया जाएगा। -इस विधेयक के क़ानून में बदल जाने के बाद अनाज की मांग 5.5 करोड़ मिट्रिक टन से बढ़ कर 6.1 मिट्रिक टन हो जाएगी। -शहरी इलाकों में कुल आबादी के 50 फीसद लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जाएगी और इनमें से कम से कम 28 प्रतिशत प्राथमिकता श्रेणी के लोगों को दिया जाएगा।(Dainik Jagran)

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