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13 नवंबर 2013

सोने के घटते आयात से बढ़ी ज्वैलर्स की चुनौतियां

देश में सोने के बढ़ते आयात पर लगाम कसने के मद्देनजर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के निर्देश के बाद घटते आयात के कारण अधिकांश सूचीबद्ध ज्वैलरों के लिए जुलाई से सितंबर की तिमाही आसान नहीं रही। उद्योग सूत्रों का कहना है कि इन बड़े ज्वैलरों के कारखाने को सोने की किल्लतों का सामना करना पड़ रहा है। फिलहाल उनके पास 2013 के अंत तक उत्पादन के लायक कच्चा माल ही उपलब्ध है। दूसरी ओर ज्वैलरों को बढ़ते कर्ज बोझ का भी सामना करना पड़ रहा है क्योंकि अब उन्हें पहले पट्टïे पर लिए गए सोने का भुगतान भी करना पड़ रहा है। एक ज्वैलरी फर्म के शीर्ष अधिकारी ने कहा, 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन्वेंटरी में कच्चे माल का अभाव है। कुछ ज्वैलर इन्वेंटरी के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चे माल का भंडार मौजूद रखते हैं लेकिन कुछ अन्य ज्वैलरों को आरबीआई के प्रावधानों से प्रभावित होना पड़ा है।Ó टाइटन कंपनी लिमिटेड ने कहा कि उसने केवल नवंबर तक की जरूरतों के लिए सोने की खरीद की है। जबकि नाम जाहिर न करने की शर्त पर अन्य ज्वैलरों ने कहा कि उसके पास दिसंबत तक की जरूरतों के लायक सोना मौजूद है। त्रिभुवनदास भीमजी जावेरी लिमिटेड, गीतांजलि जेम्स लिमिटेड और पीसी ज्वैलर्स लिमिटेड सहित लगभग सभी ज्वैलरों का कहना है कि घरेलू और अंतरराष्टï्रीय बाजारों में बेचने लायक आभूषण तैयार करने के लिए वे सोने के आयात पर निर्भर हैं। टाइटन को 10 टन तक सोना सीधे आयात करने का लाइसेंस प्राप्त है। टाइटन अपने इस लाइसेंस का उपयोग कर सकती है लेकिन अन्य ज्वैलर्स के पास इस प्रकार का लाइसेंस मौजूद नहीं है। आरबीआई के दिशानिर्देशों के तहत केवल 80 फीसदी आयातित सोने का इस्तेमाल ही घरेलू बाजारों के लिए किया जा सकता है जबकि शेष 20 फीसदी आयातित सोने से निर्यात के लिए आभूषण तैयार करना अनिवार्य है। इससे घरेलू आभूषण कारोबार को काफी धक्का लगा है। जेम्स ऐंड ज्वैलरी फेडेरेशन के चेयरमैन हरेश सोनी ने कहा, 'इस उद्योग को घरेलू बाजार में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। (BS Hindi)

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