कुल पेज दृश्य

21 जनवरी 2014

गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग का प्रकोप

नगर संवाददाता - हनुमानगढ़ जिले के नोहर क्षेत्र में गेहूं की फसल में पीला रतुआ नामक बीमारी का प्रकोप पाया गया है। कृषि अधिकारियों के मुताबिक जसाना, फेफाना, पदमपुरा, परलीका, राजपुरिया, रामगढ़ व गोगामेड़ी आदि गांवों में इस बीमारी के लक्षण देखे गए हैं। पीला रतुआ रोग आद्र्र वातावरण में अधिक पनपता है। अभी यह बीमारी नोहर व भादरा इलाके में है, मगर पीलीबंगा, संगरिया व हनुमानगढ़ जैसे क्षेत्रों में भी फैलने की आशंका है। 2011-12 में भी जिले में इस बीमारी का प्रकोप पाया गया था। उस समय फरवरी माह में इस रोग के लक्षण देखने को मिले थे, लेकिन अब शुरुआती स्टेज में ही यह रोग पाया गया है। अधिकारियों के मुताबिक इस बीमारी के फैलने से उत्पादन काफी प्रभावित हो सकता है हालांकि अभी दवा का छिड़काव कर इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यह है पीला रतुआ रोग पीला रतुआ रोग फंफूदजनित बीमारी है। कम तापमान और अधिक आद्र्रता होने से यह बीमारी फैलती है। हालांकि गेहूं की कुछ किस्मों में यह बीमारी नहीं होती लेकिन कई किस्में इस बीमारी के प्रति रजिस्टेंट नहीं हैं। इस रोग में पौधे की पत्तियों पर पीली धारियां बन जाती हैं और इसके चलते प्रकाश संशलेषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है और उत्पादन कम हो जाता है। यह है रोकथाम का उपाय : विभागीय अधिकारियों के मुताबिक रोग का लक्षण मिलने पर प्रोपिकॉनाजोल 25 प्रतिशत ईसी 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए। इसे जरूरत के अनुसार 10-15 दिन में दोहराया जाए। ऐसा करने पर रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। अभी किया जा सकता है नियंत्रण ॥नोहर-भादरा क्षेत्र के कई गांवों में गेहूं की फसल पीला रतुआ से प्रभावित है। जिले के अन्य क्षेत्रों में भी यह रोग हो सकता है। समय रहते दवा का छिड़काव करने से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। बलबीर सिंह, सहायक निदेशक कृषि विस्तार, नोहर अन्य क्षेत्र की नहीं मिली रिपोर्ट ॥नोहर-भादरा क्षेत्र से पीला रतुआ रोग की शिकायत मिली है। समय रहते उपाय करने से इसका रोकथाम संभव है। अभी जिले के बाकी क्षेत्र से इस तरह की रिपोर्ट नहीं मिली है। डॉ. उदयभान, उपनिदेशक, कृषि विस्तार हनुमानगढ़. रोग के कारण पीले हुए गेहूं के पत्ते। &&&&&&&&&&&&&& गेहूं में पीला रतुआ से किसानों में हड़कंप रादौर (मलिक): गेहूं की फसल में समय से पहले पीला रतुआ बीमारी लगने की जानकारी मिलते ही कृषि वैज्ञानिकों व किसानों में हड़कंप मच गया। गेहूं अनुसंधान निदेशालय करनाल की निदेशक ने कृषि वैज्ञानिकों के साथ गांव रत्नगढ़ नंदपुरा में पीला रतुआ बीमारी से प्रभावित गेहूं के खेतों का दौरा किया। गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग की रोकथाम के लिए कृषि वैज्ञानिक लंबे समय से प्रयासरत हैं। समय-समय पर किसानों को गेहूं की ऐसी किस्मों की बिजाई करने की सलाह देते हैं जिनमें पीला रतुआ बीमारी न लगे। आमतौर पर पीला रतुआ रोग गेहूं की फसल में फरवरी मास में आती है लेकिन गांव रत्नगढ़ के किसान नाथी राम के गेहूं के खेत में जनवरी के प्रथम सप्ताह में पीला रतुआ बीमारी लगने से कृषि वैज्ञानिकों में चिंता बढ़ गई। इस बीमारी से गेहूं की पैदावार प्रति एकड़ 80 प्रतिशत तक कम हो जाती है जिससे किसानों को काफी आर्थिक नुक्सान होता है। क्या कहते हैं निदेशक इस बारे में गेहूं अनुसंधान निदेशालय करनाल की निदेशक डा. इदुंशर्मा ने कहा कि गांव रत्नगढ़ के किसान के गेहूं के खेत में पीला रतुआ नामक बीमारी पाई गई है और इतनी जल्दी पीला रतुआ रोग लग जाना चिंता की बात है। उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि गेहूं के जिन खेतों में पीला रतुआ रोग के लक्षण नजर आते हैं उन गेहूं के खेतों में 200 लीटर पानी में प्रोपिकोनाझोल दवाई का छिड़काव करें। आमतौर पर पीला रतुआ रोग जनवरी के अंतिम सप्ताह व फरवरी मास में गेहूं के फसल में लग जाता है लेकिन जनवरी मास के प्रथम सप्ताह में पीला रतुआ रोग गेहूं की फसल में लगना चिंता की बात है। &&&&&& गेहूं में पीला रतुआ की दस्तक यमुनानगर जिले में गेहूं की फसल में पीला रतुआ की दस्तक ने किसानों के होश फाख्ता कर दिए हैं। जनवरी की शुरूआत में इस बीमारी ने वैज्ञानिकों को भी चौका दिया है। आम तौर पर मध्य जनवरी के बाद ही पीला रतुआ की संभावना पैदा हो सकती है, लेकिन इस बार बहुत जल्द इस बीमारी के लक्षण दिखाई दिए हैं। गेहूं अनुसंधान निदेशालय करनाल की टीम ने यमुनानगर के दामला क्षेत्र के रतनगढ़ गांव में किसान नाथी राम के खेतों का निरीक्षण कर पीला रतुआ की पुष्टि की है। इस स्थिति को देखते हुए यमुनानगर जिले के किसानों को सतर्क होने की सलाह दी गई है। रतनगढ़ गांव के किसान की तरफ से संदेश मिलने के बाद एक जनवरी को निदेशालय के वैज्ञानिक मौके पर पहुंचे और गेहूं की फसल का निरीक्षण किया। गेहूं की डब्ल्यूएच-711 किस्म में एक खेत में पीला रतुआ के लक्षण पाए जाने पर वैज्ञानिक चौक गए। खेत का गहन निरीक्षण किया गया और कुछ पौधों को करनाल लाकर जांच की गई। गेहूं में पीला रतुआ की रोकथाम के लिए गेहूं अनुसंधान निदेशालय, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा व उत्तरप्रदेश के कृषि विभाग पहले से ही चौकस थे। निदेशालय में कुछ समय पूर्व हुई बैठक में पहले ही दिशा-निर्देश दिए गए थे और कृषि अधिकारियों को आवश्यक सलाह दी थी। किसानों ने इस बार गलती यह की कि वैज्ञानिकों व कृषि अधिकारियों के लाख समझाने के बावजूद ऐसी किस्मों की बिजाई कर डाली जिनमें पीला रतुआ की संभावना रहती है। जबकि रोग रोधी किस्मों की बिजाई पर जोर दिया गया था। चिंता की बात यह है कि इतने बड़े स्तर पर अभियान चलाने के बावजूद किसानों ने किस्म नहीं बदली। वह पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। गंभीर बात यह है कि किसानों की सोच में किस तरह परिवर्तन लाया जा सकेगा। निदेशालय की परियोजना निदेशक वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. इंदू शर्मा ने कहा कि शीघ्र ही वह यमुनानगर जिले का निरीक्षण करने जाएंगी। रतनगढ़ गांव के खेत में कितने बड़े पैच में पीला रतुआ आया उसकी जांच करेंगे। उन्होंने किसानों को सजग होने का संदेश देते हुए कहा कि नियमित रूप से खेतों का निरीक्षण करें। सभी किस्मों की जांच करें। यदि पीला रतुआ के लक्षण दिखाई दें तो कृषि विशेषज्ञों की सलाह के बाद बीमारी की रोकथाम को लेकर तुरंत प्रभावी कदम उठाएं।

कोई टिप्पणी नहीं: