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14 फ़रवरी 2014

दुनिया भर में जीएम फसलों का रकबा तीन फीसदी बढ़ा

विरोधियों ने आईएसएएए पर क्षेत्रफल बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाने का आरोप लगाया भले ही जेनेटिकली मॉडीफाइड (जीएम) फसलों की खेती अब दो दर्जन से ज्यादा देशों में हो रही है, लेकिन अमेरिका और ब्राजील में ही किसानों के बीच ज्यादा लोकप्रिय हो पाई हैं। एशिया में मुख्य रूप से चीन में जीएम मक्का और चावल की ही खेती ज्यादा हो रही है। जीएम फसलों की वकालत करने वाले संगठन इंटरनेशनल सर्विस फॉर एक्वीजिशन ऑफ एग्री-बायोटेक एप्लीकेशंस (आईएसएएए) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 में 1752 लाख हैक्टेयर में जीएम फसलों की खेती हुई। यह क्षेत्रफल पिछले वर्ष के मुकाबले तीन फीसदी ज्यादा था। इसमें अमेरिका और ब्राजील के किसानों की हिस्सेदारी ज्यादा थी। हालांकि बायोटेक के आलोचक इस संगठन पर यूरोप और विकासशील देशों का क्षेत्रफल बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाने का आरोप लगाते हैं। जिससे इन क्षेत्रों में जीएम फसलों को ज्यादा समर्थन दर्शाया जा सके। यूरोप में विरोधियों का कहना है कि बायोटेक फसलों की वजह से पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल बढ़ा है और इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। जीएम उपज मानव और पशु आहार के लिए सुरक्षित होने की भी अभी तक पुष्टि नहीं हो पाई है। जबकि जीएम फसलों के समर्थक और बीज कंपनियां इन्हें सामान्य फसल से अलग नहीं मानती हैं। आईएसएएए के चेयरमैन क्लाइव जेम्स ने एक बयान में कहा कि बायोटेक फसलें गरीब किसानों के लिए काफी लाभदायक हैं। किसानों को पानी की कमी और खरपतवार व कीटों के हमले का सामना करना पड़ता है। जलवायु में परिवर्तन भी हो रहा है। ऐसे में नई तकनीक का उपयोग समय की मांग है। इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए। अमेरिका में किसानों ने पिछले साल 701 लाख हैक्टेयर में जीएम मक्का, सोयाबीन, कॉटन, कनोला, अलफला और कुछ अन्य फसलों की खेती की। हालांकि पिछले वर्ष इनका रकबा 2012 के मुकाबले करीब एक फीसदी कम रहा। ब्राजील में किसानों ने 403 लाख हैक्टेयर में बीटी सोयाबीन, मक्का और कॉटन की खेती की। वहां रकबा करीब दस फीसदी ज्यादा रहा। अमेरिका में जीएम फसलों का रकबा सबसे ज्यादा है। 1996 में जीएम फसलों की खेती की शुरूआत सबसे पहले अमेरिका में ही हुई थी। अमेरिका और ब्राजील को छोड़कर बाकी देशों में रकबा सीमित ही है। चीन में 2013 के दौरान रकबा पांच फीसदी बढ़कर 42 लाख हैक्टेयर हो गया। आईएसएएए का अनुमान है कि जीएम फसलों की कुल कीमत 14.6 अरब डॉलर से बढ़कर 15.6 अरब डॉलर हो गई। (Business Bhaskar)

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