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18 मई 2015

सोने के प्रति उदार रही मोदी सरकार

एक साल पहले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बनी सरकार ने सोने के प्रति नरम रुख अपनाया और अब सरकार की कोशिश भारतीयों के सोना रखने के तरीके में बदलाव लाने की है। हालांकि एक साल का समय काफी कम होता है और सरकार को अपना एजेंडा पूरी तरह लागू करने के लिए काफी कुछ करना बाकी है। इनमें से कितनी कोशिशें सफल होंगी यह तो वक्त बताएगा क्योंकि यह बात सफलता को लागू करने के तरीकों पर निर्भर करती है। दरअसल साल की शुरुआत उदार दृष्टिïकोण के साथ हुई। सरकार ने शपथ लेने से ठीक एक दिन पहले बड़े आयातकों को सोने का आयात करने की अनुमति दे दी जो बाद में विवादित विषय बन गया लेकिन धीरे-धीरे सरकार ने इस क्षेत्र में उदारता लाने की कोशिशें कीं।

सोने के प्रति उदार रवैये से आयात और आयात खर्च में पिछले एक साल के दौरान महत्त्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई है। साल के दौरान सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमत 5.56 फीसदी घटकर 1,224 डॉलर प्रति औंस हो जाएगी जबकि मुंबई में कीमत 7.39 फीसदी घटकर 27,550 रुपये प्रति 10 ग्राम रही। पूर्व में बाजार में भौतिक डिलिवरी पर 180 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच चुका प्रीमियम लगभग खत्म हो चुका है। वर्ष 2013-14 में सोने का आयात 638 टन तक पहुंच चुका था और वर्ष 2014-15 में यह 50 फीसदी तक बढ़कर 967 टन के करीब पहुंच गया और आयात खर्च एक साल 28.7 अरब डॉलर से बढ़कर 34.4 अरब डॉलर तक हो गया।   इंडियन बुलियन ऐंड ज्वैलर्स एसोसिएशन (आईबीजेए) के अध्यक्ष मोहित कंबोज ने कहा, 'नई सरकार ने सोने के प्रति नकारात्मक रुख नहीं अपनाया।' 80:20 योजना के तहत आयातित सोने का 20 फीसदी वापस निर्यात करने की योजना का उद्देश्य चालू खाते के घाटे को कम करना था, सरकार ने इसे खत्म कर दिया। यहां तक कि सरकार इस क्षेत्र में कौशल विकास और मेक इन इंडिया को बढ़ावा दे रही है। बैंकों को भी आभूषण विक्रेताओं को सोने का ऋण देने की अनुमति दे दी गई। हालांकि बैंकों का रवैया अभी भी इस क्षेत्र के प्रति नकारात्मक है जिसे बदला जाना चाहिए।

अब वित्त मंत्रालय ने दो योजनाओं का प्रस्ताव दिया है जिनका लक्ष्य सोने को रखने के भारतीयों के तरीकों को बदलना और भारतीय घरों और मंदिरों में बेकार पड़े सोने का इस्तेमाल बढ़ाना है। सोना जुटाने की योजना और गोल्ड सॉवरिन बॉन्ड का प्रस्ताव बजट में पेश किया गया था और फिलहाल इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। बॉन्ड भौतिक रूप में सोना खरीदे बगैर प्रतिफल देने के लिए है जबकि सोने के नकदीकरण की योजना बेकार पड़े सोने का इस्तेमाल उत्पादक गतिविधियों के लिए करना और उन लोगों को उचित प्रतिफल देने के लिए लाई जा रही है जिनके पास सोना है। दोनों योजनाओं में सोने की कीमतों पर मिलने वाले प्रतिफल के अलावा ब्याज दरें भी तय की गई हैं। अनुमान के मुताबिक करीब 22,000 टन सोना जिसकी कीमत 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक है, भारतीय परिवारों के पास बेकार पड़ा है। अगर इस प्रयास में सफलता मिलती है तो बगैर किसी नियंत्रण के सोना आयात करने की जरूरत कम हो जाएगी। हालांकि सरकार ने सोने के आयात पर 10 फीसदी का शुल्क बरकरार रखा और वर्ष 2014-15 में 3.4 अरब डॉलर जुटाए। इसकी वजह से तस्करी बढ़ रही है और काले धन का बाजार फलफूल रहा है। विश्व स्वर्ण परिषद, भारत के प्रबंध निदेशक सोमसुंदरम पीआर ने कहा, 'आयात पर नियंत्रण हटाने के कारण गैर आधिकारिक आयात घटने की उम्मीद है, खासतौर पर मंदी के सीजन में लेकिन चैनल अभी भी खुला हुआ हो।' 

सोने के बाजार पर नजर रखने वाले दिग्गज कारोबारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'सोने का बड़े पैमाने पर धन जुटाने के लिए किया जा सकता है, आज भी गैर मानकीकृत सोना आयातित किया जाता है जब पूरी दुनिया इसके खिलाफ है।' गैर मानकीकृत सोने का इस्तेमाल तस्करी के लिए किया जाता है। सरकारी एजेंसी के एक अधिकारी ने कहा, 'अगर सारा कारोबार खातों में दर्ज हो जाए तो आयात परेशान नहीं करेंगे क्योंकि कर राजस्व बढ़ेगा।' दूसरे शब्दों में कारोबार को संगठित करने की जरूरत है तो बहुत बड़ा होने के बावजूद असंगठित है। मोहित कंबोज का कहना है कि वे महाराष्टï्र सरकार और एमआईडीसी के साथ मुंबई के बाहरी इलाके में एक ज्वैलरी पार्क बनाने के लिए बातचीत कर रहे थे जहां कौशल विकास और निर्यात के लिए विनिर्माण को बढ़ावा दिया जाएगा। (BS Hindi)

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