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14 जुलाई 2015

जीएम फसलों के परीक्षण पर रोक

विभिन्न संगठनों, खासकर आरएसएस परिवार से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) और भारतीय किसान संघ (बीकेएस) की ओर से हो रहे विरोध को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने धान,चना, मक्का, बैंगन और कपास की जीन संवर्धित (जीएम) फसलों के परीक्षण पर रोक लगा दी है। सरकार ने इन फसलों को लेकर विभिन्न हिस्सेदारों की ओर से हो रही आपत्तियों और प्रतिक्रियाओं को परमाणु वैज्ञानिक अनिल काकोडकर की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति को सौंप दिया है। समिति की बैठक 15 जुलाई को होगी और उसके बाद अपनी सिफारिशें देगी। सरकार इस समय राज्य के कुछ जिलों में सूखे जैसी स्थिति से निपटने के लिए जूझ रही है, ऐसे में वह किसी भी हाल में काकोदकर समिति की रिपोर्ट आने के पहले परीक्षण की अनुमति देने की जल्दबाजी में नहीं है।

पिछले साल 31 अक्टूबर में सत्ता संभालने के बाद नई सरकार ने इस संबंध में कांग्रेस- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) सरकार की नीति को जारी रखा। यह परीक्षण एक हेक्टेयर या उससे भी छोटे रकबे में होते हैं, जिससे प्राथमिक रूप से जीएम फसलों के जैव सुरक्षा प्रभाव की क्षमता के आंकड़े जुटाए जाते हैं। दिलचस्प है कि भाजपा के सहयोगी संगठन स्वाभिमानी शेतकरी संघटना के प्रमुख और सांसद राजू शेट्टी और राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने जीएम फसलों के परीक्षण का पूर्ण समर्थन किया है।

काकोडकर ने जीएम फसलों के परीक्षण पर रोक लगाए जाने की पुष्टि की है। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'महाराष्ट्र सरकार को विभिन्न हिस्सेदारों की ओर से प्रतिक्रिया मिली है। सरकार ने यह सूचना समिति को सौंपी है, जो आगे इस मामले को देखेगी। समिति की बैठक जल्द होगी।' एक सरकारी अधिकारी ने भी इस बात की पुष्टि की कि 18 विभिन्न जीएम फसलों के खेत में परीक्षण पर रोक लगा दी गई है और समिति के फैसले के बाद ही परीक्षण के बारे में फैसला होगा।

एसजेएम के सदस्य अनिल गाचके ने कहा कि जीएम बीजों का दोबारा इस्तेमाल नहीं हो सकता, ऐसी स्थिति में किसानों को उसे हर साल खरीदना होगा, जिस पर ज्यादा धन खर्च होगा। उन्होंने कहा, 'जीएम फसलों के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है। साथ ही बीटी बीजों की कीट प्रतिरोधक क्षमता 3-4 साल में नष्ट हो जाती है, जिससे ज्यादा उर्वरक और कीटनाशकों की जरूरत पड़ती है।' बीकेएस के संगठन सचिव दिनेश कुलकर्णी ने कहा, 'बीकेएस नई तकनीक का विरोध नहीं करता। लेकिन संगठन का मानना है कि ऐसे परीक्षण पहले प्रयोगशालाओं में पारदर्शी तरीके से होने चाहिए। इसका मानव, पर्यावरण व पशुओं पर प्रभाव को लेकर भी परीक्षण होना चाहिए।' (BS Hindi)

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