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31 मई 2016

कपास से मुंह मोड़ रहे हैं उत्तर भारत के किसान


 देश के उत्तरी और पश्चिमी राज्यों में कपास की बुआई शुरू हो चुकी है। इस बार कपास की खेती में उल्लेखनीय कमी आने का अनुमान है। किसानों को पिछले साल कीटों के हमले (व्हाइटफ्लाई) और लीफ कर्व वायरस जैसी बीमारियों के कारण भारी नुकसान हुआ था। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में बुआई चल रही है और देखने में आ रहा है कि किसान कपास छोड़कर दूसरी फसलों का रुख कर रहे हैं। पिछली बार हुए नुकसान से सबक लेकर किसान खासकर दालों (अरहर और मूंग) की बुआई कर रहे हैं।   पंजाब में कपास का रकबा पिछले साल के 540,000 हेक्टेयर की तुलना में इस बार घटकर 320,000 हेक्टेयर रहने का अनुमान है। यानी कपास की खेती में 40 प्रतिशत की कमी। हरियाणा में भी कपास के रकबे में 20 प्रतिशत आने की संभावना है। राज्य सरकार के कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पिछले साल हरियाणा में कपास का रकबा 583,000 हेक्टेयर था।    पंजाब और हरियाणा को पिछले साल व्हाइटफ्लाई से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे और पंजाब में तो राज्य के कृषि विभाग द्वारा वितरित नकली कीटनाशक से कई किसानों की पूरी फसल तबाह हो गई थी। धान और ग्वार खरीफ की दो अहम वैकल्पिक फसलें हैं लेकिन धान की फसल पानी की कमी वाले क्षेत्रों के लिए अनुकूल नहीं है और ग्वार की कीमतों में अस्थिरता के चलते हरियाणा के किसान इससे परहेज करते हैं। एक अधिकारी ने कहा कि बीज की उपलब्धता के मुताबिक पंजाब और हरियाणा में दालों का रकबा बढ़ सकता है। पंजाब और हरियाणा ने फसल की बीमारियों लगने के कारणों के अध्ययन और इससे बचने के लिए उपाय सुझाने के वास्ते एक समिति का गठन किया था। समिति ने एक ही तरह की फसल उगाने के चक्र को तोडऩे और कपास की देसी किस्मों को बढ़ावा देने का सुझाव दिया है। लेकिन कपास की देसी किस्मों के प्रमाणित बीजों की सीमित उपलब्धता इसमें एक बड़ी रुकावट है और यही वजह है कि अधिकांश इलाकों में बीटी कॉटन बोया जाता है।   पंजाब जिनिंग मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भगवान बंसल ने कहा कि सूखे और लू की मौजूदा स्थिति कपास की फसल के लिए आदर्श है क्योंकि इस स्थिति में कीट जिंदा नहीं रह सकते। यही वजह है कि इस बार अच्छी फसल होने की संभावना है। राजस्थान में भी कपास का रकबा कम हो सकता है क्योंकि नहरों में बहुत कम पानी है और मॉनसून भी एक हफ्ते पिछड़ चुका है। राजस्थान जिनिंग मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आदित्य चित्तलंगिया ने कहा कि जिन किसानों के पास सिंचाई के वैकल्पिक साधन हैं वे ही कपास की बुवाई कर सकते हैं बाकी किसान दूसरी फसलों का रुख कर चुके होंगे। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष धीरेन सेठ ने कहा कि कुल रकबे पर टिप्पणी करना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन ऐसी रिपोर्ट हैं कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की सरकारें कपास की खेती को हतोत्साहित कर रही हैं। 

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