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01 मार्च 2018

सस्ता खाद्य तेलों का आयात कहीं सरकार के गले की फांस न बन जाए

आर एस राणा
नई दिल्ली। खाद्यान्न के साथ ही दलहन के रिकार्ड उत्पादन से केंद्र सरकार अपनी पीठ तो थपथपा रही है लेकिन सस्ते खाद्य तेलों के आयात के कारण किसान तिलहनी फसलों से तौबा कर रहे हैं जिसका खामियाजा सरकारी खजाने से भारी—भरकम राशि चुकाकर करना पड़ रहा है। सरकार नीतियां तो बना रही है लेकिन व्यवाहरिक नहीं होने के कारण इनका उल्टा असर हो रहा है। तिलहनों का उत्पादन पिछले चाल साल में बढ़ने के बजाए उल्टा घट गया हैं। फसल सीजन 2013-14 में देश में 327.49 लाख टन तिलहनों का उत्पादन हुआ था जबकि फसल सीजन 2017-18 में इनका उत्पादन घटकर 298.82 लाख टन ही होने का अनुमान है।
साल दर साल खाद्य तेलों के मामले में बढ़ती आयात निर्भरता से जहां घरेलू खेती को नुकसान हो रहा है। घटती घरेलू पैदावार व बढ़ते आयात के बीच लगातार अंतर बढ़ता ही जा रहा है। सस्ते आयात के चक्कर में घरेलू तिलहनी फसलों की खेती किसानों के लिए महंगी साबित हो रही है। लिहाजा उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नहीं मिल पाता।
एमएसपी से नीचे बिक रही है सरसों और मूंगफली
उत्पादक राज्यों में किसानों को मूंगफली 3,900 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचनी पड़ रही है जबकि चालू फसल विपणन सीजन 2017-18 के लिए केंद्र सरकार ने इसका एमएसपी 4,450 रुपये प्रति क्विंटल (बोनस सहित) किया हुआ है। इसी तरह से सरसों की नई फसल की आवक शुरू होने से पहले ही उत्पादक मंडियों में इसके भाव 3,600 से 3,700 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गए हैं जबकि इसका एमएसपी 4,000 रुपये प्र​ति क्विंटल तय किया हुआ है।
आयात निर्भरता बढ़कर 65 फीसदी से ज्यादा
पिछले एक दशक में हालात बद से बदतर हो चुके हैं। इससे पार पाने के लिए केंद्र के साथ ही राज्य सरकारों ने उपाय जल्द शुरू नहीं किए तो फिर हालात काबू में नहीं आ पायेंगे। वर्ष 2010-11 में हम अपनी जरुरत के 50 फीसदी खाद्य तेलों का आयात कर रहे थे जोकि फसल सीजन 2016-17 में आयात निरर्भता बढ़कर 65 फीसदी से ज्यादा हो गई है। वर्ष 2010-11 में 79.2 लाख टन खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन हुआ था जबकि फसल सीजन 2016-17 में घरेलू उत्पादन घटकर 79.1 लाख टन ही होने का अनुमान है।
खाद्य तेलों की सालाना खपत 225 लाख टन के पार
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी वी मेहता ने बताया कि देश में खाद्य तेलों की सालाना खपत बढ़कर 225 लाख टन से ज्यादा हो गई है जबकि घरेलू उत्पादन 72 से 79 लाख टन पर टिका हुआ है। अत: घरेलू जरुरतों को पूरा करने के लिए सीजन 2016-17 में रिकार्ड 150 लाख टन से ज्यादा खाद्य तेलों का आयात हुआ है। जिससे सरकारी खजाने पर 75 हजार करोड़ रुपये का भार पड़ा है।
खपत के हिसाब से 10 लाख खाद्य तेलों का उत्पादन हर साल बढ़े
उन्होंने बताया कि देश में जनसंख्या में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए हर साल 10 लाख टन अतिरिक्त खाद्य तेलों की जरुरत है जिसके लिए करीब 30 लाख टन तिलहनों का उत्पादन हर साल बढ़ाना होगा, लेकिन उत्पादन बढ़ने के बजाए घट रहा है। खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को तिलहनी फसलों का उचित मूल्य दिलाने के साथ ही प्रति हैक्टेयर उत्पादकता बढ़ाना भी जरुरी है। खाद्य तेलों के सस्ते आयात को रोकने के लिए एक भाव तय कर देना चाहिए, जिससे नीचे भाव आने पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी की जाये। आमतौर पर तिलहनों की ज्यादा खेती असिंचित क्षेत्रों में होती है अत: मौसम का असर भी तिलहनी फसलों पर पड़ता है।.......  आर एस राणा

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